शनिवार, 12 मई 2012

गया नगर निगम चुनाव : प्रशासन की अच्छी पहल


गया नगर निगम चुनाव : प्रशासन की अच्छी पहल

लेकिन बहुत कुछ करना है अभी

बिहार में नगर निकाय के चुनाव होने वाले हैं । मतदान 17 मई को है। यहां की जिलाधिकारी बंदना प्रेयसी हैं। एक अच्छी और संवेदनशील अधिकारी हैं। निष्पक्ष चुनाव के लिये बिहार चुनाव आयोग ने बहुत सारे सराहनीय कदम उठाये हैं। गया में इसका प्रभाव दिख रहा है । चुनाव कार्यालय खोलकर शराब और मुर्गा का दौर चलानो वाले प्रत्याशियों के यहां सदर अनुमंडलाधिकारी परितोष कुमार तथा पुलिस प्रशासन ने छापेमारी की । मुकदमे दर्ज किये गये। अवैध रुप से चुनाव कार्यालय खोलकर बैनर लगाने वालों पर भी कार्रवाई की गई । अभी एक नया आदेश हुआ है , दबंग प्रत्याशियों को जिला बदर करने का । यह सराहनीय है । वैसे भी प्रत्याशी का सारा कार्य करने का अधिकार उसके चुनाव अभिकर्ता यानी एलेक्शन एजेंट को है, इसलिये प्रत्याशी क्षेत्र में रहे न रहे इससे कोई अंतर नही पडने वाला । हां एक कानूनी पहलू जरुर जुडा हुआ है . जिला बदर करने का प्रावधान अपराध नियंत्रण कानून की धारा ३ तथा Bihar Maintenance of Public order act 1949 ( amended 1961) की धारा २ में भी externment का प्रावधान है परन्तु उसके साथ अन्य पहलू भी हैं जिनका पालन अनिवार्य है अन्यथा उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप का मौका मिल जायेगा और जिलाधिकारी के इस आदेश पर तत्क्षण रोक लग जायेगी। इसके अलावा भी अन्य विकल्प हैं जो अवांक्षित तत्वों को रोक सकते हैं। बिहार मीडिया एक बात दावे के साथ कह सकता है कि ऐसे अवांक्षित तत्वों के अंदर खामिंया भरी पडी हैं । जब प्रशासन चाहेगा उनका नामांकन रद्द हो सकता है । इसके लिये सबसे उत्तम रास्ता है चुनाव के दिन प्रत्याशी को थाने में बैठा के रखा जाय । प्रत्याशी के वैसे समर्थक या परिवार जो मतदान को प्रभावित कर सकते हैं उन्हें जिला बदर कर दिया जाय ।
जिलाधिकारी अपने यहां उस तरह के सभी उम्मीदवारों की बैठक बुलाकर स्पष्ट चेतावनी दे दें कि अगर उनकी किसी भी गतिविधि के कारण चुनाव बाधित होने या निष्पक्ष चुनाव में बाधा उ्त्तपंन होने की बात सामने आती है तो अविलंब गिरफ़तारी की जायेगी। उम्मीदवारों में प्रशासन का खौफ़ साफ़ दिख रहा है । मतदाता भी आश्वस्त हैं । अब सिर्फ़ चुनाव के पहले बटने वाले पैसे पर रोक लगाने की जरुरत है ।



 लेकिन बहुत कुछ करना है अभी


1.     चुनाव का मुख्य खेल अभी बाकी है । चुनाव में दलित तथा गरीब वर्ग के मतदाताओं का वोट खरीदा जाता है । इस कार्य को अंजाम देते हैं क्षेत्र के दबंग तथा सुदखोर। अधिकांश दलित बस्तियों में नाजायज शराब की बिक्री होती है । नाजायज शराब का व्यवसाय करने वाले दलितों के वोट की बिक्री में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं। हर दलित मुहल्ले के कुछ बेरोजगार लडके शराब बेचने वाले के ग्रुप में शामिल रहते हैं , उनके माध्यम से दलितों का वोट खरीदा जाता है । पिछली बार मेरे क्षेत्र के वार्ड संख्या  41  में स्थित चमारटोली का वोट पैसे और शराब पर खरीदा गया था ।  इस बार भी यही होगा । पुलिस का अपना तंत्र है , पता लग जाना बहुत आसान है । हमारा भी प्रयास होगा कि जानकारी प्राप्त होने पर प्रशासन को इसकी सूचना दें।

2.     मतदान के बाद मेयर और उप मेयर का चुनाव होगा । इस चुनाव में जीत कर आये पार्षद वोट देते हैं। इसमें पार्षदों की खरीद की जाती है। पिछली बार 50  हजार से लेकर 3 लाख तक में पार्षद बिके थें। जो गरीब थें उन्हें कम पैसा मिला और शातिर टाईप के पार्षदों को ज्यादा । राजद के विधायक सुरेन्द्र यादव ने इसमे अहमं  भूमिका निभाई थी। इसबार उम्मीदवारों ने देख लिया है कि कितनी आय होती है पा्र्षद बन जाने के बाद । ठेका से लेकर कमीशन और दाखिल खारिज में दलाली तक । इसबार का खुला भाव है  3 से 4  लाख रुपया प्रति पार्षद । पिछली बार सबसे ज्यादा पैसा सुरेश शर्मा ने वसूला था तथा अपनी पत्नी को सशक्त स्थायी समिति का सदस्य भी बनवाया था । बोधगया के होटल और गया के स्टेशन स्थित  अजातशत्रु होटल में पार्टियों का दौर चलता है । प्रशासन अगर गंभीरता से प्रयास करे तो न सिर्फ़ खरीद बिक्री को रोका जा सकता है , एकसाथ इस गैर कानूनी कार्य में लिप्त वार्ड पार्षद और नेता भी कानून की गिरफ़्त में आ सकते हैं ।

3.     चुनाव के दिन मतदान केन्द्रो पर तैनात पुलिस बल और चुनाव कर्मचारियों के लिये पानी तथा भोजन की अच्छी व्यवस्था नही रहती है । इसका फ़ायदा शातिर और धूर्त प्रत्याशी उठाते हैं । वे मानवता के आधार पर पानी , चाय - ठंढा , नास्ता उपलब्ध कराते हैं और एक संबंध बनाने का प्रयास करते हैं । हम भारतीय हैं इन छोटी छोटी चीजों को भी बहुत महत्व देते हैं। प्रत्याशी इसका फ़ायदा उठाकर बोगस वोट डालने या जायज वोट और अपने विरोधी उम्मीदवार के वोट को बाधित करने के लिये करते हैं। इसको रोकने के लिये प्रत्येक मतदान केन्द्र पर नियुक्त प्रत्येक पुलिस के जवान और कर्मचारी  के लिये कम से कम पाच पाच लीटर ठंढा पानी या 25  लीटर वाला पानी का ठंढा जार उपलब्ध कराया जाय। गर्मी का मौसम है। दो बार अच्छे स्तर का नास्ता और उम्दा किस्म का भोजन मतदान केन्द्र पर नियुक्त जवान और कर्मचारियों को उपलब्ध कराया जाय । इस प्रयास का असर दिखेगा ।

      वर्तमान में गया में अच्छे अधिकारी हैं । आयुक्त , डीआईजी, कलक्टर , वरीय पुलिस अधीक्षक , पुलिस अधीक्षक, नगर डीएसपी, अनुंडलाधिकारी सराहनीय कार्य कर रहे हैं । हां थाना स्तर पर कुछ गडबड है , लेकिन उसका खास असर चुनाव पर नहीं पड रहा है । पिछली बार के मुकाबले इसबार चुनाव की व्यवस्था अत्यंत अच्छी है। पिछली बार पोस्टर, बैनर , भोजन, दारु, गली गली में चुनाव कार्यालय का जोर था । इसबार यह सब नही दिख रहा है । इसका श्रेय वर्तमान प्रशासनिक सेट अप को जाता है ।





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रविवार, 6 मई 2012

गया नगर निगम चुनाव : एक निराशाजनक तस्वीर


गया नगर निगम चुनाव : एक निराशाजनक तस्वीर


बिहार में नगर निकायों के चुनाव हो रहे हैं । गया नगर निगम के प्रत्याशियों की जो सूची उपलब्ध है , वह निराश करनेवाली है । कुल 53 वार्डों में खडे प्रत्याशियों पर निगाह डालने के बाद मात्र १५-२० उम्मीदवार हीं योग्य दिखते हैं लेकिन सबसे दुखद बात जो हमारे सर्वे में उभर कर आई है , वह है मतदाताओं का विचार । अच्छे प्रत्याशियों के बारे में मतदाता यह तो स्वीकार करते हैं कि वह अच्छा है परन्तु साथ हीं साथ यह भी कहते हैं कि वह जीतेगा नही इसलिये उसे वोट दे कर अपना मत बर्बाद क्यों करें । मतदाताओं के अपने अपने तर्क हैं। जात, संप्रदाय से लेकर पैसा और बाहुबल का हवाला दे रहे हैं मतदाता । यह सब को पता है कि चुनाव न सिर्फ़ निष्पक्ष होगा बल्कि चुनाव के नियमों के उलंघन्न का दोषी पाये जाने पर प्रत्याशियों के उपर कडी कार्रवाई भी होगी , उसके बाद भी मतदाताओं का तर्क बहुत हद तक सही है ।

अभी से जातिवाद, संप्रदायिकता, पैसा और शराब का प्रभाव नजर आने लगा है । गरीब राज्य बिहार में दस दिन तक मुफ़्त में शराब, भोजन तथा जीतने के बाद ठेका पट्टा देने का लालच निष्पक्ष चुनाव के प्रयास को मात दे रहा है । इसका कारण सरकारी तंत्र है ।
हमने बिहार मीडिया के माध्यम से, अधिकारियों को इमेल और पत्र देकर हमेशा नगर निगम गया के भ्रष्टाचार को उजागर किया है तथा मांग की जांच कराने की,  काश एक बार भी गया नगर निगम के भ्रष्टाचार की जांच हो गई रहती तो आज कम से कम निवर्तमान नगर निगम गया का कोई पार्षद दुबारा चुनाव लडने के योग्य नही रहता । हमे भी किसी चमत्कार की आशा नही है । रातो रात परिवर्तन संभव नही है । बदलाव आयेगा लेकिन समय लगेगा । आज भी हमारा प्रयास जारी है । आज पुन: हम कुछ साक्ष्य यहां दे रहे हैं पिछले नगर निगम के भ्रष्टाचार के बारे में ।
आधे पार्षद ठेकेदार बन गयें और बाकी कमीशनखोर यही सच था गया नगर निगम का । अभी जैसे प्रत्याशी खडे हैं , उनसे अच्छे कार्यों की उम्मीद कोई दिवास्वप्न देखने वाला हीं करेगा लेकिन जब मतदाता हीं अच्छे व्यक्ति का चयन नहीं करना चाहता तो चुनाव आयोग , प्रशासन या सिविल सोसायटी क्या कर सकती है सिवाय मतदाताओं के अंदर जागरुकता पैदा करने  के । हम वही कर रहें हैं इस आशा के साथ कि शायद आनेवाले दस - बीस साल में परिवर्तन हो ।
निगम चुनाव की घोषणा के मात्र कुछ दिन पहले गया नगर निगम नें तकरीबन एक करोड रुपये का ठेका वैपर लाईट लगाने के लिये दिया । जानबूझकर ठेके की शर्त में एक ऐसी शर्त का समावेश निगम के कनीय अभियंता और कार्यपालक अभियंता ने किया जिससे ठेके में प्रतिस्पर्द्धा न हो और एक विशेष फ़र्म को ठेका मिल जाये। प्रतिस्पर्द्धा होने की स्थिति में एक करोड  की जगह मात्र साठ - सत्तर लाख में वह कार्य होता । वैपर लाईट के लिये गुणवतावाली कंपनियों का चयन किया गया था परन्तु उन कंपनियों के सामान की जगह डुप्लिकेट सामान लगाया गया । यह सारा काम कमीशन के लिये हुआ। वैपर लईट निवर्तमान पार्षदों के निर्देश पर लगाया जा रहा है ।
इसके अलावा प्रत्येक वार्ड को  ३-३ लाख रुपये का आवंटन किया गया विकास कार्य के लिये ताकि चुनाव में पार्षद असंतुष्ट मतदाताओं को लुभा सकें ।
यह सही है कि चुनाव आयोग का काम  किसी विभाग के भ्रष्टाचार की जांच का नही है मगर उस प्रकार का भ्रष्टाचार जो चुनाव को प्रभावित करने की नियत से किया गया है उसकी  जानकारी प्राप्त होने पर संबंधित जांच एजेंसी को जांच के लिये निर्देश देने का कार्य तो चुनाव आयोग कर हीं सकता है । आज अगर चुनाव आयोग तत्परता दिखाये  और गया नगर निगम के वैपर लाईट वाले ठेके की जांच का आदेश दे तो भ्रष्टाचारलिप्त उम्मीदवारों में भय पैदा होगा तथा मतदाताओं के बीच भी यह संदेश जायेगा कि भ्रष्टाचार में लिप्त रहने  वाले पार्षद बच नही सकते । अभी और भी साक्ष्य हैं उनके आधार पर अगर जांच होगी तो भ्रष्टाचार में लिप्त पार्षदो  को सबक मिल सकता है ।
मदन कुमार तिवारी
संपादक बिहार मीडिया

शनिवार, 5 मई 2012

जिलाधिकारी ने अपराधी को दी जीत की बधाई


जिलाधिकारी ने अपराधी को दी जीत की बधाई

आज भी  निर्विरोध जीतते हैं दुर्दांत अपराधी 



बिहार में नगर निकाय का चुनाव होने जा रहा है । गया नगर निगम का चुनाव १७ मई को है। नामांकन वापसी के बाद एकमात्र व्यक्ति निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया । वह सामाजिक कार्यकर्ता नही है न हीं शरीफ़ आदमी जिसके पक्ष में लोग सामुहिक रुप से चुनाव न लडने का निर्णय लें। पंचायत या वार्ड का चुनाव निर्विरोध होना बहुत हीं अच्छी बात है , बशर्ते बगैर भय के कोई निर्विरोध निर्वाचित हो लेकिन यह व्यक्ति जिसका नाम इबरार अहमद उर्फ़ भोला मियां है व्ह शातिर अपराधी रहा है और आज भी अपराध तथा भय का आतंक पैदा किये हुये है। अबरार अहमद उर्फ़ भोला मियां के उपर दर्जनों मुकदमें थें। लेकिन इसी सुशासन के काल में वह अधिकांश मुकदमों में बरी हो गया। गवाहों को भयभीत कर  के वह रिहा हुआ है । आज की तारीख में वह आतंक है लेकिन  मात्र     एक  मुकदमा उसके उपर है , हो सकता है उसमें भी वह   बरी  हो जाय ।  पहले भी यह एकबार निर्विरोध निर्वाचित हुआ था । लेकिन दुसरी बार दिल्ली की एक महिला पत्रकार  ने उसके खिलाफ़ चुनाव लडने की हिम्मत दिखाई । हालांकि वह हार गई , उसके साथ प्रचार के लिये भी कोई नही निकला । यह घटना है गया नगर निगम के वार्ड संख्या  25 की । यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है हालांकि इस क्षेत्र में हिंदु मतदाता भी हैं । इसलिये यह अभियोग भी नही लगाया जा सकता है कि संप्रदायिकता के कारण मुस्लिम मतदाताओं ने एक अपराधी के खिलाफ़ उम्मीदवार नहीं उतारें। 
एकबार पहले भी बच्चू यादव नामक एक माफ़िया सरगना निर्विरोध निर्वाचित हुआ था । उसकी पत्नी महापौर बनी थी । मुझे नगरपालिका अधिनियम का जानकार मानते हैं लोग और बिहार में सबसे पहला मुकदमा महापौर को हटाने के लिये उक्त अधिनियम के तहत मैने हीं किया था। उस समय तक किसी को यह पता भी नही था कि महापौर को हटाने के लिये मुकदमा हो सकता है और अधिनियम के कौन से प्रावधान के तहत मुकदमा किया जा सकता है । खैर बच्चू यादव के निर्विरोध निर्वाचन से तकलीफ़ हुई थी । मैने निश्चय किया था कि अगर भविष्य में ऐसी नौबत आती है कि कोई गलत व्यक्ति भय या पैसे कि बदौलत निर्विरोध निर्वाचित होने का प्रयास कर रहा हो तो मैं वहां से खडा होउंगा , जितने के लिये नही, उक्त व्यक्ति के भय को समाप्त करने के लिये।
 भोला मियां ने बहुत हीं शातिराना रास्ता अपनाया । उसने अपने हीं आदमी से नामांकन दाखिल करवाया तथा उसके आदमी या चमचा जो कहा जाय , उसने अंतिम क्षण में नामांकन वापस ले लिया । भोला मियां का निर्वाचन  अवैध है । उसने भय पैदा करके अपने खिलाफ़ उम्मीदवार नहीं खडा होने दिया और जानबूझकर एक डम्मी उम्मीदवार खडा कर दिया । यह निष्पक्ष चुनाव की मूलभूत भावना के आत्मा की हत्या है । प्रजातंत्र का मजाक है भोला मियां का निर्विरोध निर्वाचन। चुनाव आयोग की ड्यूटी है यह देखना कि कोई व्यक्ति  भय या आतंक पैदा करके तो चुनाव में निर्विरोध निर्वाचित नही हो रहा है । अबरार अहमद उर्फ़ भोला मियां का निर्विरोध निर्वाचित होना गया के जिला प्रशासन के लिये शर्मनाक बात है । उसका निर्वाचन यह जाहिर करता है कि राजद के आतंक वाले शासन की समाप्ति के बाद भी आतंक समाप्त नही हुआ है । बिहार चुनाव आयोग, गया जिला की निर्वाचन पदाधिकारी तथा पुलिस प्रशासन की यह ड्यूटी है कि गुप्त रुप से इसकी जांच करवाये कि आखिर कौन सा कारण था कि एक दुर्दांत अपराधी तथा गया का आतंक रह चुके अबरार अहमद उर्फ़ भोला मियां के खिलाफ़ कोई उम्मीदवार नही खडा हुआ और जो एक उम्मीदवार खडा हुआ , उसने नामांकन वापस ले लिया । लेकिन यह बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है कि गया की जिलाधिकारी ने उक्त अपराधी भोला मियां के निर्विरोध निर्वाचन पर बधाई देते हुये कहा है कि ऐसे हीं उम्मीदवारों को चुनना चाहिये जो विकास का काम करें।    यह माना जा सकता है कि चुनाव कानून की कुछ खामियों के कारण इस तरह के लोग निर्वाचित हो जाते हैं , लेकिन जरुरत उन खामियों को दूर करने की है न कि उनका फ़ायदा उठाकर चुनाव जीतने वाले गलत व्यक्ति को बधाई देने की । वैसे भी चुनाव संबंधी मार्गदर्शिका एवं कानून में बधाई देने का कोई निर्देश या प्रावधान नही है । जिलाधिकारी की इस बधाई संदेश पर लोग अचंभित हैं । बिहार मीडिया गया की निर्वाचन पदाधिकारी सह जिला पदाधिकारी को इस बात की चुनौती देता है कि वे भोला मियां के क्षेत्र में हुये विकास कार्यों की क्वालिटी की जंच करायें। भोला मियां भू माफ़िया भी हैं। भू माफ़िया पावर आफ़ एटार्नी के माध्यम से जमीन का व्यवसाय करते हैं ताकि कालाधन का पता न चले, सरकार को निबंधन शुल्क न देना पडे और आय कर तथा संपति कर की बचत हो । बिहार मीडिया चुनाव आयोग , जिला निर्वाचन पदाधिकारी तथा जिला पुलिस प्रशासन को भू माफ़ियाओं के खिलाफ़ मदद करने के लिये तैयार है । भोला मियां के खिलाफ़ भय पैदा करके निर्विरोध निर्वाचन की जांच कैसे हो सकती है और साक्ष्य कहां से प्राप्त होगा , इसकी जांच के लिये भी बिहार मीडिया मदद के लिये तैयार है । हमारा दावा है कि अगर जांच होगी तो अबरार अहमद उर्फ़ भोला मियां का निर्वाचन रद्द हो जायेगा ।
संपादक

मदन कुमार तिवारी
अधिवक्ता
0631-2223223, 8797006594